परिचय:
शतावरी रेसमोसेस एक प्रसिद्ध (फेमस) मेडिसिनल प्लांट है जो भारत में उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय (ट्रॉपिकल एंड सबट्रॉपिकल) क्षेत्रों में पाया जाता है। इस पौधे को आमतौर पर ‘शतावरी’ कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है जिसके सौ पति हों या जो बहुत से लोगों द्वारा अपनाया गया हो’। अ) रेसमोसेस, बहुत सी शाखाओं के साथ एक काँटेदार छोटी झाड़ियाँ हैं और कई गाँठदार जड़ों (ट्यूबरस रूट्स) के साथ एक छोटा ट्यूबरस रूटस्टॉक है।1
बहुत सी रिकर्व्ड स्पाइन, छोटे सफेद फूल, स्केल के पत्तों के साथ सिकल (हसियाँ) के आकार के क्लैडोड और ग्लोबोज बेरीज तनों की शोभा बढ़ाते हैं। यह पौधा व्यापक रूप से भारत के उष्णकटिबंधीय (ट्रॉपिकल) और उपोष्णकटिबंधीय (सबट्रॉपिकल) क्षेत्रों और हिमालय में समुद्र तल से 1,500 मीटर ऊपर उगाया जाता है। श्रीलंका, ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और ट्रॉपिकल अफ्रीका भी इस प्रकार के पौधे पाए जाते हैं।1
शतावरी का पोषक मूल्य (न्यूट्रिशनल वैल्यू):
Shatavari Ka Poshak Mulya(Nutritional Value)
शतावरी का पोषक मूल्य नीचे दर्शाया गया है:
- क्रूड प्रोटीन: 7.8 ± 0.2
- कार्बोहाइड्रेट: 37.2 ± 0.5
- टोटल फैट (वसा): < 1
- क्रूड फ़ाइबर: 28.9 ± 0.4
शतावरी की एनर्जी वैल्यू 180 किलो कैलोरीl/100 ग्राम है।2
शतावरी के चिकित्सीय (थेराप्यूटिक) उपयोग:
शतावरी के कुछ थेराप्यूटिक फायदे नीचे दिए गए हैं:
- कई सालों से थेराप्यूटिक उद्देश्यों के लिए इस पौधे का उपयोग किया गया है, मुख्य रूप से इसका उपयोग महिला प्रजनन अंगों (फीमैल रीप्रोडक्टिव ऑर्गन) पर इसके पुनरावर्ती प्रभाव (रिक्यूपरेटिव इम्पैक्ट) के लिए किया जाता है।
- आयुर्वेद ए., रेसीमॉसस को एक पॉटेंट रसायन के रूप में परिभाषित (डिस्क्राइब) करता है जो ऐजिंग की प्रोसेस को धीमा करता है, लंबी उम्र देता है, और इम्यूनिटी और मेंटल परफॉरमेंस को बढ़ाता (बूस्ट) करता है।
- आयुर्वेद में जड़ों का उपयोग पेट से संबंधी (स्टमकिक), कामोत्तेजक (ऐफ्रोडीज़ीऐक), टॉनिक और बोवेल अस्ट्रिन्जेन्ट के रूप में किया जाता है। पेचिश (डीसेन्ट्री), ट्यूमर, पित्त (बिलीयसनेस), ब्लड और आँखों के डिसॉर्डर, इन्फ्लामेशन (सूजन /जलन), गठिया (रूमेटिज़्म) और नर्वस सिस्टम के डिसॉर्डर इन सभी का इलाज इन जड़ों का उपयोग करके किया जाता है।
- इन जड़ों का उपयोग यूनानी मेडिसिन में लिवर और किडनी की समस्याओं, ग्लीट और गोनोरिया को ठीक करने के लिए किया जाता है।
- भारत के आयुर्वेदिक फार्माकोपिया के अनुसार, गाउट, लैक्टिक प्रॉब्लम, प्यूरपेरल संबंधी बीमारियों, हेमचुरिया और अन्य थेराप्यूटिक ऐप्लिकेशन में शतावरी के ट्यूबरस जड़ों का उपयोग किया जाता है। यह एक जनरल टॉनिक और फीमैल रिप्रोडक्टिव टॉनिक के रूप में उपयोग किया जाता है।
- इस पौधे की जड़ का एक्सट्रैक्ट आयुर्वेदिक फॉर्मूलेशन ‘सतावरी मंडूर’ का एक प्रमुख तत्व (एलिमेंट) है, जिसका पारंपरिक (ट्रेडिशनल) रूप से गैस्ट्रिक अल्सर का इलाज करने के लिए उपयोग किया जाता है।1
- शतावरी, हिमालयी बेल्ट का एक देशी पौधा है, जिसे आयुर्वेद (चरक संहिता) में एक गैलेक्टागॉग के रूप में उपयोग किया जाता है, और क्लीनिकल जाँचों ने बांझपन (इंफर्टिलिटी) को ठीक करने की इसकी क्षमता का खुलासा किया है।3
शतावरी के फायदे:
एक फीमेल टॉनिक के रूप में शतावरी के फायदे:
- महिलाओं को उनके प्रजनन वर्षों (रिप्रोडक्टिव टाइम) के दौरान मानसिक (साइकोलॉजिकल), फिज़िकल और शारीरिक तनावों (फिजियोलॉजिकल स्ट्रेसर्स) के संपर्क में आने की अधिक संभावना होती है।4
- आयुर्वेद में शतावरी को फीमैल टॉनिक के रूप में उपयोग किया जाता है।
- एक रिजुविनेटिंग हर्ब होने के साथ, यह कामेच्छा (लिबीडो) को बढ़ाकर, यौन अंगों (सेक्शुअल ऑर्गन) की इन्फ्लामेशन को ठीक करके, और सूखे ऊतकों में नमी ला कर, फोलिकुलोजेनेसिस और ओव्यूलेशन को बढ़ाकर, गर्भधारण (कन्सेप्शन) के लिए गर्भ (यूटरस/ वॉम्ब) को तैयार करना, गर्भपात (मिस्कैरिज) को रोकना और लैक्टैशन को बढ़ाकर, यूटरस को नॉर्मल कर के और हॉर्मोन को बदल कर पोस्टपार्टम टॉनिक के रूप में कार्य करके महिलाओं में बांझपन (फीमैल इंफर्टिलिटी) के इलाज में सहायता करती है।
- यह ल्यूकोरिया और मेनोरेजिया जैसी स्थितियों को मैनेज करने के लिए भी उपयोग किया जाता है।5
शतावरी के न्यूरोप्रोटेक्टिव इफेक्ट:
- अल्जाइमर और पार्किंसंस डिसॉर्डर में एक्साइटोटॉक्सिसिटी और ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस मुख्य न्यूरोनल सेल डेथ मैकेनिज्म हैं।6
- आयुर्वेदिक मेडिसिन सिस्टम में, शतावरी रेसिमोसस एक प्रसिद्ध तंत्रिका (नर्वाइन) टॉनिक है।
- डिमेंशिया अल्जाइमर डिसीज का एक लक्षण है, जो सबसे आम न्यूरोडीजेनेरेटिव डिसॉर्डर में से एक है।
- सरसापोजेनिन, ए रेसिमोसस में पाया जाने वाला एक स्टेरायडल सैपोनिन है, जिसमें संभावित (पोटेंशियल) एंटी-एमायलॉइडोजेनिक गुण पाए जाते हैं जो डिमेंशिया की प्रोग्रेस को धीमा कर सकते हैं।3
शतावरी की एंटी-बैक्टिरीअल और एंटी-प्रोटज़ोअल ऐक्टिविटी:
- इस्चेरिचिया कोलाई, शिगेला डिसेंटेरिया, शिगेला सोननेई, शिगेला फ्लेक्सनेरी, विब्रियो कोलेरा, साल्मोनेला टाइफी, साल्मोनेला टाइफीम्यूरियम, स्यूडोमोनास पेक्टिडा, बैसिलस सबटिलिस और स्टैफिलोकोकस ऑरियस के खिलाफ शतावरी की जड़ों के मेथनॉलिक एक्सट्रैक्ट का इन विट्रो एंटी-बैक्टीरियल इफेक्ट पाया गया।
- इन विट्रो में एंटअमीबा हिस्टोलिटिका की वृद्धि (ग्रोथ) शतावरी की जड़ों के क्रूड एल्कोहॉलिक एक्सट्रैक्ट के एक एक्वस सोल्यूशन से रुक गई थी।5
शतावरी की एंटी-ऑक्सीडेन्ट ऐक्टिविटी:
- शतावरी लिपिड परॉक्सीडेशन और प्रोटीन ऑक्सीडेशन को रोकता है इसलिए यह एंटी-ऑक्सीडेंट ऐक्टिविटी प्रदर्शित करता है।5
- रेसिमोफ्यूरान, एस्पैरागामाइन ए और रेसिमोसोल शतावरी की जड़ से बनने वाले तीन एंटी-ऑक्सीडेंट हैं जो आपके शरीर को बीमारी और नुकसान से बचाते हैं।7
शतावरी की एंटी-अल्सर प्रॉपर्टीज (गुण):
- आयुर्वेदिक फॉर्मूलेशन ‘सतावरी मंडूर’ ने कोल्ड-रेस्ट्रेन्ट स्ट्रेस, एसिटिक एसिड, पाइलोरस लाइगेशन, पाइलोरस लाइगेशन के साथ एस्पिरिन, और सिस्टेमाइन-इन्ड्यूस डुओडिनल अल्सर के कारण होने वाले अक्यूट गैस्ट्रिक अल्सर के खिलाफ जरूरी सुरक्षा की है।
- म्यूकोसल डिफेन्स मेकेनिज़्म पर ए रेसिमोसस को एक्सट्रैक्ट करने की प्रक्रिया पेट के अल्सर को ठीक करने के लिए जिम्मेदार हो सकती है।
- पेट के खाली रहने का समय बढ़ने से डुओडिनल अल्सर बढ़ जाते है और इस पेट के खाली रहने के समय को कम करने की क्षमता होने के कारण ए रेसिमोसस डुओडिनम में इसकी एंटी-अल्सर गतिविधि को दिखा सकती है।1
एडाप्टोजेनिक कम्पाउन्ड के रूप में शतावरी के लाभ:
- एडाप्टोजेनिक कम्पाउन्ड किसी भी प्रकार के तनाव (स्ट्रेस) से निपटने में किसी भी जीव (ऑर्गेनिज़्म) की सहायता करते हैं, चाहे वह तनाव शारीरिक (फिज़िकल) हो, रासायनिक (केमिकल) हो या जैविक (बायोलॉजिकल) हो।
- बायोलॉजीकल, फिज़िकल और केमिकल स्ट्रेस के संपर्क में आने वाले जानवरों ने ओरली दिए गए ए. रेसिमोसस के पूरे पौधे के एक्वस एक्सट्रैक्ट के लिए पॉज़िटिव रिस्पॉन्स दिया है।
- चूहों में, क्रॉनिक, अप्रत्याशित, लेकिन हल्के फुटशॉक स्ट्रेस-इंडयूस्ड व्यवहार में डिस्टर्बेन्स (डिप्रेशन), ग्लूकोज मेटाबॉलिज़्म, पुरुषों में दबा हुआ यौन व्यवहार, इम्यूनोसप्रेशन, और कॉग्निटिव डिस्फंक्शन सभी का इलाज एक हर्बल फॉर्मूलेशन के साथ किया जाता है जिसमें ए रेसिमोसस होता है जिसे ‘सियोटोन’ के रूप में जाना जाता है।1
शतावरी का गैलेक्टोगॉज इफेक्ट:
- गैलेक्टोगॉज एक केमिकल है जो इंसानों और जानवरों में स्तनपान (लेक्टेशन) में सुधार करता है।
- यह आमतौर पर सेकंडरी लैक्टेशनल फेलियर के मामले में उपयोग किया जाता है।
- जानवरों पर किये जाने वाले अध्ययनों के अनुसार, इस पौधे की जड़ों का एक्वस एक्सट्रैक्ट मैमरी लोबुलो-एल्वियोलर टिशू के वजन के साथ-साथ दूध की उपज में सुधार करने के लिए सिद्ध हुआ है।1
शतावरी के एंटी-डायरियल इफेक्ट के फायदे:
- जानवरों पर हुई स्टडी के अनुसार, इसके जड़ों के एथानॉल और एक्वस एक्सट्रैक्ट में एंटी-डायरियल गुण होते हैं।
- इसके द्वारा इलाज करने से गेस्ट्रोइंटेस्टाइनल प्रोपल्शन और फ्लूइड सिक्रीशन दोनों पर असर पड़ा है।
- यह एक्सट्रैक्ट प्रोस्टाग्लैंडीन प्रोडक्शन को रोक कर काम करता है, जो गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल मोटिलिटी और सिक्रीशन को रोकता है।1
शतावरी का उपयोग कैसे करें?
शतावरी पाउडर को ट्रेडिशनल तरीके से रूम टेम्परेचर के पानी में मिलाकर उपयोग किया जाता है। शतावरी पाउडर का स्वाद मीठा और कुछ कड़वा होता है। अगर आपको इसका स्वाद पसंद नहीं है, तो इसे दूध या जूस से पतला करें। आप इसका उपयोग स्मूदी बनाने के लिए भी कर सकते हैं।
वैज्ञानिक (साइन्टिफिक) रूप से इसका कोई निर्धारित खुराक (डोजिंग रेंज) नहीं है। इसके बजाय, इसका डोज आपकी उम्र, वजन, हेल्थ और अन्य बातों के आधार पर निर्धारित की जाती है।7
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शतावरी के नुकसान:
आयुर्वेद लंबे समय तक उपयोग के लिए ए. रेसिमोसस को पूरी तरह से सुरक्षित मानता है। जानवरों पर की गई स्टडी के अनुसार, मृत्यु दर (मॉर्टलिटी), शारीरिक (फिजियोलॉजिकल) और जैविक (बायोलॉजिकल) पैरामीटर, ब्लीडिंग, या टिशूज में नेक्रोसिस के संदर्भ में कोई बदलाव नहीं पाया गया है। हालाँकि, कुछ जानवरों पर किये गए अध्ययन के अनुसार, इसके निम्न नुकसान पाए गए हैं:
- जड़ के एक ऐल्कहॉलिक एक्सट्रैक्ट के कम डोज में मेंढक के दिल पर सकारात्मक (पॉजिटिव) आयनोट्रोपिक और क्रोनोट्रोपिक इफेक्ट होता है, लेकिन इसका ज्यादा मात्रा में सेवन करने से कार्डियक अरेस्ट होता है।
- ज्यादा मात्रा में अल्कोहल के एक्सट्रैक्ट का ब्रोन्कियल मांसपेशियों पर कमज़ोर पड़ने वाला असर (डाइलैटरी इम्पैक्ट) हुआ था, लेकिन यह हिस्टामाइन-इंडयूस्ड ब्रोन्कोकन्सट्रक्शन का विरोध नहीं करता था।1
शतावरी के सेवन के साथ ली जाने वाली सावधानियाँ:
प्रेगनेंसी और ब्रेस्ट-फीडिंग:
गर्भावस्था (प्रेगनेंसी) या स्तनपान (ब्रेस्टफीडिंग) के दौरान शतावरी रेसिमोसस का सेवन सुरक्षित है या नहीं, इसका कोई पर्याप्त सबूत नहीं हैं। इसका सेवन करने से पहले सुरक्षा के तौर पर (सेफ साइड) डॉक्टर की सलाह ज़रूर ले लें।8
प्याज, लीक, लहसुन और इनसे संबंधित पौधों से एलर्जी:
लिलिएसी फॅमिली के अन्य सदस्यों जैसे प्याज, लीक, लहसुन और चिव्स से एलर्जी वाले लोगों को शतावरी रेसिमोसस से एलर्जी की रिएक्शन का अनुभव हो सकता है।8
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अन्य दवाओं के साथ परस्पर क्रिया (इंटरैक्शन):
डाइयूरेटिक के साथ शतावरी का इंटरेक्शन:
एस्पैरेगस रेसिमोसस को पोटेशियम के लेवल को कम करने के लिए दिखाया गया है। डाइयूरेटिक जिसे ‘वाटर पिल्स’ भी कहा जाता है, यह भी पोटेशियम के लेवल को कम कर सकता है। जब एस्पैरेगस रेसिमोसस का उपयोग ‘वाटर पिल्स’ के साथ किया जाता है, तो पोटेशियम का लेवल खतरनाक रूप से कम हो सकता है।8
लिथियम के साथ शतावरी का इंटेरैक्शन:
एस्पैरेगस रेसिमोसस में ‘वाटर पिल’ इफेक्ट हो सकता है। एस्पैरेगस रेसिमोसस लेने से लिथियम को खत्म करने की शरीर की क्षमता कम हो सकती है। यह शरीर में लिथियम की मात्रा को बढ़ाकर महत्वपूर्ण साइड इफेक्ट (नुकसान) कर सकता है। अगर आप लिथियम पर हैं तो इस प्रोडक्ट का उपयोग करने से पहले अपने डॉक्टर से संपर्क करें। आपके लिथियम डोज को एडजस्टमेंट की जरूरत हो सकती है।8
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अक्सर पूछे जाने वाले सवाल:
शतावरी के संभावित फायदे क्या है?शतावरी को कई अन्य बीमारियों के इलाज और उनकी रोकथाम के लिए उपयोग किया गया है; हालाँकि, इसके लिए और रिसर्च की जरूरत है।
शतावरी ऐल्कहॉल छुड़वाने, चिंता (एन्जाइटी), किडनी और ब्लाडर की पथरी (स्टोन), ब्रोंकाइटिस, डायबिटीक न्यूरोपैथी और डाइबीटीज़, हार्टबर्न, इरिटेबल बोवेल सिन्ड्रोम (IBS), इन्फ्लामेशन, मेमोरी से संबंधित प्रॉब्लम और दर्द जैसी स्थितियों को नियंत्रित करने में भी मदद कर सकती है।7
शतावरी के अन्य सामान्य नाम क्या है?बहुत सी भारतीय भाषाओं में इस पौधे के अन्य नाम है – शतमुली (बंगाली), सतावरी (गुजराती), सतावर (हिन्दी), वाइल्ड एस्पैरगस (अंग्रेजी); सतावरी, सतमुली;
सतावरी (मलयालम), असवेल, शतमुली, सतावरी (मराठी), छोटारू, मोहजोलो, सोताबोरी (उड़िया); शतावरी (कन्नड़); बोजिदान, सतावर (पंजाबी); सतमुली, सतपदी, शतावरी (संस्कृत); तनिर्वित्तन, निर्मित्तन (तमिल); पिल्ली गड्डालू अममाइकोडी (तेलुगु); सतावर, सतावरा, शककुल मिश्री, सतावर (उर्दू)।1
क्या हम शतावरी का उपयोग कफ का इलाज करने में कर सकते हैं?जानवरों पर हुए एक अध्ययन (स्टडी) के अनुसार, शतावरी की जड़ के मेथनॉलिक एक्सट्रैक्ट ने अच्छा एंटीट्यूसिव एक्शन दिखाया। इंसानों में कफ में आराम पाने के लिए इसका उपयोग कर सकते हैं, लेकिन इस पर और अध्ययन किये जाने की जरूरत है।1
शतावरी कहाँ उगता है?यह एशिया, ऑस्ट्रेलिया, और अफ्रीका के कम ऊँचाई (अलटीट्यूड) की छाया वाली जगहों और उष्णकटिबंधीय क्षेत्र (ट्रॉपिकल एरिया) में पाया जा सकता है। भारत में शतावरी की सबसे ज्यादा उगने वाली प्रजाति ए. रेसिमोसस है, जो कि ट्रेडिशनल इंडियन मेडिसन (पारंपरिक भारतीय चिकित्सा) में उपयोग में ली जाती है।5
क्या शतावरी पॉलीसिस्टिक ओवेरीअन सिन्ड्रोम (PCOS) के रोगियों में मासिक धर्म (पीरीयड्स) को रेगुलेट करने में मदद करता है?PCOS एक प्रमुख एनओव्यूलेटरी रिप्रोडक्टिव हेल्थ डिसॉर्डर है जो 4-12% महिलाओं को प्रभावित करता है और इसके कारण इन महिलाओं में इंफर्टिलिटी जैसे समस्याएँ होती हैं। क्लीनिकल ट्रायल में, शतावरी PCOS को कम करने और फॉलिकल की ग्रोथ को बढ़ाने, फॉलिकल का विकास करवाने और ओव्यूलैशन (अंडोत्सर्ग) को बढ़ाने में बहुत सहायक था। इसलिए, यह प्रस्तावित किया जाता है कि PCOS- से संबंधित इंफर्टिलिटी का इलाज एक आयुर्वेदिक थेरेपी जिसमें शतावरी के रेजिमेन को शतपुष्पा और गुडूची के साथ मिलाकर किया जाता है, और इसके साथ रसायन कल्प, जो कि शतावरी, गुडूचीम जटामांसी, और आँवलें का मिश्रण होता है, इनसे किया जाता है।4
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